hindisamay head


अ+ अ-

कविता

हाशिए मन के

मुकुट सक्सेना


बहुत छोटे रह गए हैं
हाशिए मन के
यदि पुनश्च हो गर लिखना
कहाँ पर अब लिखें
कट गए संदर्भ सब
इस व्यस्तता की जिंदगी से

शेष केवल उदर का
सम्मान करना रह गया है
हम प्रगति के नाम पर
भौतिक कुलाचें भर रहे हैं
और मूल्यों का क्षितिज
‘धिक्कार’ हम को कह गया है
पृष्ठ सारा इस कदर
अवसाद से अब मर चुका है
दौर इतना भी नहीं
है शेष हस्ताक्षर करें

हर कहीं दुर्भावना के गर्भ में
कुंठा पली है
विषमता ने मानवी संवेदना
हर पल छली है
यांत्रिक उपलब्धियाँ तो
अनगिनत हैं पास अपने
और आगत के लिए हैं
इंद्रधनुषी सुखद सपने
किंतु हम सब यंत्रवत
रोबोट बन कर जी रहे हैं
इस अजाने तिमिर में
अब दीवटों पर
कौन-सा दीपक धरें?


End Text   End Text    End Text